Thursday, April 14, 2011

मेरे सपने

 
इन शब्दों में कैसे बयां करू 
कितनी  इन्तहा चाहत मैं  उनसे करता हूँ 
वक़्त गुजर जाता है जिनकी आस  में 
और मैं थम थम के उनसे बातें करता हूँ 
पल पल भर के नजराने में 
कितने सपने मुझको दिख  जाते है 
आस लगा कर हाथ बड़ा कर  
जब मैं आगे बढता हूँ ,
पाता हूँ ना कुछ , बस धूल उन सपनो की
जिनसे मैंने आगे बढ कर आना सीखा