Wednesday, October 27, 2010

आक्रोश

मैं  क्यों  हैरान  होता 
      पल  पल  क़ि  बातो  में  
सभाल  ना  पाता  अपने  धीरज  को 
      बह  जाता   इसी  हैरानी  में
अन्दर  का  आक्रोश  जाग  जाता 
      पल  भर  क़ि   लाचारी   में 
भूल   जाता  आज  कल  वर्तमान  को 
      उत्तेजत  हो  जाता  मन  इसी   परेशानी  में 

पंगु  हो  जाती  सोच  हमारी 
       रह  जाता  सिर्फ  भ्रम  अहम्  का 
दुविधा  का  भव  सागर  विकराल  हो  जाता 
       जब  पड़ती  चोट  आत्मगिलानी  की 
जाग  जाता  स्वाभिमान   हमारा 
     टूट   जाती  बेड़िया   सारी 
रह  जाता  बस  एक  ही  अभिमान 
      जिंदगी  का  सच  यही है 
जीता  है  सिर्फ  बलवान 
       जीना  है  जियो  शान  से
वर्ना बद्तर  है  जीना  कायर   के  सामान 


 इस  भव  सागर  में  कैसे  दुविधा  आई  है 
         पल  भर  में  हमने  मौत  पर  जीत  पाई  है 
बड़ते  आत्म  विश्वाश  ने 
         हम  में  इक  नयी  चेतना  लायी  है 
 दिखा  देंगे  उनसब  को 
             जिनसे  हमने   चोट  खायी  है 

लिया  है  संकल्प  आज  अपने   आप  से 
      हार  ना  मानेगे  जिन्दगी  में  कभी  
ना रुकेंगे   ना  थकेंगे  
          जब  तक  मंजिल  पर  ना पहुचेंगे 
विचारो  में  हमारे  शक्ति  हैं 
         इरादों  की  नीव  भी   पक्की है

युग  बदलेगी  यह  सोच  हमरी 
         जब  जानेगी   ये  दुनिया  सारी
हम  विकृत अपाहिज   हुए  तो  क्या  हुआ 
         जान  हम  में  भी  बसती   है 
              
पर फिर    क्यों दुनिया हम   पर  हसती   है 
                   फिर  दुनिया  क्यों  हम  पर  हसती  है ..

10 comments:

Unknown said...

waah waah

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर...

नवीन said...

बहुत सुन्दर...

पंख said...

bohot hi sundar lekhan... keep writing... :)
and plz remove word verification frm ur settings..

anonymous said...

धन्यवाद दोस्तों ...

मन की विभा है निराली

दो पल की खुसिया भर देती हरियाली

यह देख कवी फूला ना समाता

जब श्रोता को अपने भावो मैं विभोर पाता ...

Unknown said...

nice poem...

Chandar Meher said...

बहुत सुन्दर लिखते रहिये भावनाओं को व्यक्त करते रहिये....लगता है आप ने ऑन लाईन टाईपिंग की है. क्या आप जानते हैं कि आप ऑफ लाईन भी टाईपिंग कर सकत हैं (ट्रंस्लिट्रेशन टूल)के ज़रीये...

स्नेह और शुभकामनायें
चन्दर मेहेर
kvkrewa.blogspot.com
lifemazedar.blogspot.com

संगीता पुरी said...

इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

Unknown said...

शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।

एक विचार : चाहे कोई माने या न माने, लेकिन हमारे विचार हर अच्छे और बुरे, प्रिय और अप्रिय के प्राथमिक कारण हैं!

-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
E-mail : dplmeena@gmail.com
E-mail : plseeim4u@gmail.com
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http://baasindia.blogspot.com/

amitraj said...

wow!! yaar i loved it. especially the way u ended it on big note. waiting for next one so eagerly.