मैं क्यों हैरान होता
पल पल क़ि बातो में
सभाल ना पाता अपने धीरज को
बह जाता इसी हैरानी में
अन्दर का आक्रोश जाग जाता
पल भर क़ि लाचारी में
भूल जाता आज कल वर्तमान को
उत्तेजत हो जाता मन इसी परेशानी में
पंगु हो जाती सोच हमारी
रह जाता सिर्फ भ्रम अहम् का
दुविधा का भव सागर विकराल हो जाता
जब पड़ती चोट आत्मगिलानी की
जाग जाता स्वाभिमान हमारा
टूट जाती बेड़िया सारी
रह जाता बस एक ही अभिमान
जिंदगी का सच यही है
जीता है सिर्फ बलवान
जीना है जियो शान से
वर्ना बद्तर है जीना कायर के सामान
इस भव सागर में कैसे दुविधा आई है
पल भर में हमने मौत पर जीत पाई है
बड़ते आत्म विश्वाश ने
हम में इक नयी चेतना लायी है
दिखा देंगे उनसब को
जिनसे हमने चोट खायी है
लिया है संकल्प आज अपने आप से
हार ना मानेगे जिन्दगी में कभी
ना रुकेंगे ना थकेंगे
जब तक मंजिल पर ना पहुचेंगे
विचारो में हमारे शक्ति हैं
इरादों की नीव भी पक्की है
युग बदलेगी यह सोच हमरी
युग बदलेगी यह सोच हमरी
जब जानेगी ये दुनिया सारी
हम विकृत अपाहिज हुए तो क्या हुआ
जान हम में भी बसती है
पर फिर क्यों दुनिया हम पर हसती है
फिर दुनिया क्यों हम पर हसती है ..