Saturday, October 23, 2010

सफ़ेद चादर तान कर ....

सफ़ेद  चादर  तान कर ,
                  मैं किसके सपनो में खो गया था
अदाओ मैं उसकी ,
                   मैं कुछ ऐसे बह गया था
सफ़ेद  चादर  तान कर ,
                 मैं किसके सपनो में खो गया था...

कल मैंने उसको पहली बार देखा था ,
              कुछ अंजानो से चेहरों  में,
वो मुस्कराता हुआ चेहरा उसका था
              मंद मंद मुस्कान उसकी
अन्तरमन को कुछ ऐसे छु गयी
              हर पल  तस्वीर  उसकी ,
                         मैं  बना रहा हू
 सफ़ेद  चादर  तान कर ,मैं किसके सपनो में खो गया था...

वो कातिल निगाहे उसकी थी
            जिनहोने   ने सरे आम  लूटा  चैन मेरा  
सनसनी सी दौढ़ गयी थी तन मनं में 
           जब पहली  बार -- वार उसकी नजरौ का हुआ  
उन दो पल में उसने मुझ  पर,
           कैसा जालिम सा कहर ढाया 
क़ि सफ़ेद  चादर  तान कर ,
            मैं  अब उसके  सपनो में खो गया   ...


मन ही मन बेकरार होता ,
            बस उससे अबफिर मिलने को
पकड़ के  दामन ,
             दिल  की बात --   कह दूंगा उस से 
लौटा दो वो सुख चैन मेरा ,
           जो  तुम्हारी  आखो ने -- मुझसे छीन लिया
पल पल दिखती हैं मुस्कान तेरी ,
          जिस पर प्रफुल्लित हो जाता -- मन मेरा 
पल पल में सपनो में तेरे ,
           खोता रहता हर जगह

सफ़ेद  चादर  तान कर ,
                  मैं किसके सपनो में खो गया था...

विचारौ की अनगिनत  लहरों  का ,
                   तुम ही  तू एक किनारा  हो ..
हर पल दिल यह  कहता मुझसे
                  सो जाओ मैं -- तुम्हारे सपनो की सेज पर
भूल जाओ मैं सब कुछ ,
                    बस खो जाओ मैं  बस - तेरी तस्वीरो में
बस अब सपनो में तेरे ,
                 खोने को जी करता है
सफ़ेद चादर तान  कर ,
               मैं किस के सपनो में खो गया ...


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1 comment:

amitraj said...

i loved ur poem as i always i love reading u.let me ask u one thing how come u r writing abt love something happened or what