Sunday, February 17, 2008


                                           उड़ान 
  इस कविता के माध्यम से मे उस कमजोर वर्ग का उत्साह वर्धन करना चाहता हू ,जो मानसिक अथवा शारारिक रूप से विकृत है ,जिन्हें उनके कमजोर होने का हर बार एहसास कराया जाता है ,और इस से निराश हो कर वोह जिंदगी से हार मान लेते है |  इस कविता में एक पक्षी का उदाहरण  दिया गया है जो अपने पंख कट जाने पर भी आसमा छूने का विश्वास रखता है |  
अहंकारी समाज जिसे एक मनुष्य से प्रदर्शित क्या गया है ,वो कमजोर पक्षी का उपहास उड़ाते हुए कहता हैं 

 कट जायेंगे  पंख तुम्हारे
           जिन पर तुझको नाज है
                    मत भूल ! तू है एक मात्र परिंदा |
         बिन पंखो के क्या काज है   
        
    लेते उड़ान उस नभ की  
               जहा साथी संघ का साथ है
         कट जायेंगे पंख तुम्हारे
               फिर तेरी क्या आस है
                        फिर तेरी क्या आस है ---है
पक्षी बड़े ही आत्मविश्वास के साथ मनुष्य को   उत्तर देता हुए कहता :
कट जायेंगे पंख हमारे
             फिर भी कुछ करने की प्यास
 नभ छूने   की आस है
                 उड़ने  का  विश्वाश  है
          
उड़ान पंखो से नही तेरी
               तेरी इछाशक्ति का अभ्यास   है
 मत भूलो ! मानव तू भी
        सम्भव सब कुछ है
  जब तक तुझ में आस है
                      छुलेगे आसमा को भी
 यदि द्रयन्य  निश्चय
                   और आत्मविस्वास  है
 इरादों ने बदली दुनिया
                    कह रहा इतिहास है
 कट जायेंगे पंख हमारे
                      फ़िर भी कुछ करने की आस है
        नभ छूने की प्याश है
                     कुछ नया करने का विश्वाश है

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